Sunday, 5 February 2017

बाबर हुमायु और अकबर ने लगाया था गौ - हत्या पर प्रतिबन्ध - अंग्रेजों की फूट डालो नीति और आर्थिंक षडयंत्र था गौ -हत्या को कानूनी बनाना




मुगल साम्राज्य और गाय:
बाबर ने अपनी वसीयत “तूज़ुक-ए-बाबरी” में अपने पुत्रों से कहा “हुमायूँ को हिंदूओं की भावनाओं की इज्जत करनी चाहिए और इसीलिए मुगल साम्राज्य में कहीं भी न तो गाय की बलि हो और न ही गायों को मारा जाए। यदि कोई मुगल राजा इस का उलंघन करेगा, उसी दिन से हिंदुस्तान के लोग मुगलों का परित्याग कर देंगे”।
अनेकों मुगल राजाओं जैसे की अकबर, जहाँगीर, अहमद शाह आदि ने अपनी सल्तनत में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। मैसूर रियासत के शासकों (वर्तमान में कर्णाटक राज्य) हैदर अली और टीपू सुल्तान ने तो गौ हत्या और गौ मांस भक्षण को एक संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया था, और यह कानून बनाया था की यदि कोई व्यक्ति गौ हत्या में लिप्त पाया गया या फिर गाय का मांस बेचता या खाता हुआ पाया गया तो उसके दोनों हाथ काट दिये जाएँ।

आज भारत वर्ष में 36000 से अधिक क़तलगाह है, कैसे शुरू हुआ ये सब?
अंग्रेज़ो का शासन काल और कत्लगाह
आजादी से पहले महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू, दोनों ही ने यह घोषणा कर दी थी की आजादी के बात भारत में पशु कत्लगाहों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। परंतु यह स्वाभाविक है की इसे लागू नहीं किया, आखिर क्यों? क्योंकि रोबर्ट क्लाइव ने भारतीय मुसलमानों में ऐसा प्रचार किया की “गौ मांस खाना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है” और धीरे-धीरे यह वोट बैंक की राजनीति में परिवर्तित हो गया, कैसे?  आइये जाने...

राबर्ट क्लाइव जो की तथाकथित रूप से भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का स्थापक था और बंगाल का दो बार गवर्नर भी बना, भारत की कृषि आधारित मजबूत अर्थव्यवस्था को देख कर आश्चर्य चकित था। उसने भारत की कृषि प्रणाली का गूढ़ अध्ययन किया और पता लगाया की इसका मूल आधार है हमारा पशु धन और उसमें भी प्रमुख रूप से गाय। उसने पाया की न सिर्फ धार्मिक रूप से वरन सामाजिक रूप से भी गाय बारात में एक महत्वपूर्ण पशु है। गाय किसी भी हिन्दू के घर में उसके परिवार के सदस्यों की भांति, परिवार का एक अभिन्न अंग थी। उसे यह जानकार आश्चर्य हुआ की अनेक गावों में तो पशुओं की संख्या वहाँ पर रहने वाले गाँव वालो से भी अधिक थी। सदियों से गाय का गोबर और मूत्र न केवल दवाइयों के निर्माण में काम आता था, बल्कि उसका उपयोग ईंधन और खाद के रूप में भी किया जाता था।  उस समय भारतीय कृषक किसी भी रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया करते थे।

अतः राबर्ट क्लाइव ने यह निर्णय लिया की वह भारतीय समाज और कृषि व्यवस्था की इस रीढ़ को तोड़ देगा। और इस तरह, भारत का पहला पशु वध कारख़ाना राबर्ट क्लाइव द्वारा सन 1760 में कलकत्ता में शुरू हुआ। इस कारखाने में लगभग 30,000 गायें प्रतिदिन काटने की क्षमता थी। अब कोई भी अंदाजा लगा सकता है की इस अकेले कारखाने में एक साल में कितनी गए काटी जाती होंगी। धीरे-धीरे सौ वर्षों के अंतराल में भारतीय कृषि व्यवस्था को सहयोग देने के लिए पशुओं की कमी होने लगी।  अंग्रेज़ो ने इसकी भरपाई के लिए भारतीय किसानो को कृत्रिम खादों के उपयोग के लिए प्रेरित किया और भारत में ब्रिटेन से रासायनिक खाद, जैसे यूरिया और फास्फेट आदि का आयात शुरू हो गया। इस प्रकार भारतीय कृषि व्यवस्था अपनी नैसर्गिक प्रकर्ति पर आधारित व्यवस्था छोड़ कर  धीरे-धीरे विदेशों में निर्मित रासायनिक खादों और कलपुर्ज़ो पर निर्भर करने लगी।


क्या आप जानते हैं की 1760 से पहले भारत में न केवल गौ हत्या पर प्रतिबंध था, बल्कि सार्वजनिक रूप से मदिरा पान और वेश्यावृति आदि पर भी प्रतिबंध था। राबर्ट क्लाइव ने इन तीनों से प्रतिबंध हटा लिया और उन्हे कानूनी जामा पहना दिया।

इस प्रकार, अंग्रेजों ने अपनी इस चाल से एक तीर से तो शिकार किए, पहला था की पशु आधारित भारतीय कृषि व्यवस्था का नाश (पशुओं की संख्या कम कर के) और दूसरा?
यह तो स्वाभाविक ही था की इन कत्लगाहों में कोई भी हिन्दू कसाई के रूप में काम नहीं करता था, अंग्रेज़ वैसे भी अपनी फूट डालो और राज करो की नीति में महारत थे। तो उन्होने क्या किया? उन्होने मुसलमानो को कसाइयों के रूप में इन पशु कत्लगाहों में रोजगार दिया और धीरे धीरे मुसलिम समाज में यह प्रथा बनती गई की गाय को काटना या गाय को खाना उनका धार्मिक अधिकार है।

क्या आप जानते हैं की जिस राबर्ट क्लाइव ने यह सब शुरू किया उसका क्या हश्र हुआ – मित्रों, उसे अफीम खाने की आदत लग गई और अंत में उसने अपनी बीमारियों और भयंकर दर्द से तंग आकर एक दिन आत्महत्या कर ली।


भगवान शिव का प्रिय - अत्यंत शुभ फलदायक श्री रूद्रष्टकं स्तोत्रम् - अर्थ सहित



-: श्री रूद्रष्टकं स्तोत्रम् - अर्थ सहित :-

नमामीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासम भजेङहम्।।1।।


हे मोक्ष स्वरूप, विभू, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिवजी! मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित अर्थात माया से रहित, गुणो से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश रूप एंव आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ।

निराकारमोंकार मूलं तुरीयं गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोङहम्।।2।।
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभींर मनोभूत कोटि प्रभाश्रीशरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारूगंगा लसद भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।3।।
जो हिमालय समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा हैं, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित हैं।

चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।4।।
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुदर भकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकण्ठ व दयालु हैं, सिंह चर्म धारण किये व मुडंमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे, सब के नाथ श्री शंकर जी को  मैं भजता हूँ ।

प्रचण्ड प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानु कोटिप्रकाशम।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणि भजेङहं भवानी पति भावगम्यम्।।5।।
प्रचण्ड (रूद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनो प्रकार के शूलों (दुःखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

कलातित कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जानन्ददाता पुरारी।
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।
कलाओं से परे, कल्यांणस्वरूप, कल्प का अन्त (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंद मन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

न यावद उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ।।7।।
हे पार्वती के पति, जब तक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है।  अतः हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय) में निवास करने वाले प्रभो! प्रसन्न होइये।

न जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोङहं सदा सर्वदा शम्भूतुभ्यम् ।
जरजन्मदुःखौ घतात प्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमाशीश शम्भो ।।8।।
मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो! मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो! बुढापा व जन्म और मृत्यु के दुःखों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे इश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।

रूद्राष्टकमिदं प्रोक्त विपेण हरतुष्टयै।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषा शम्भुः प्रसीदति ।।

भगवान रूद्र का यह अष्टक उप शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेम स्वरूप पढते हैं, श्री शंकर उप से प्रसन्न होते हैं।


प्रत्येक मनोरथ की पूर्ति के लिए उपयोगी हैं कुछ विशेष माला - जरूर पढ़ें यह महत्वपूर्ण जानकारी




गले में माला पहनने का जहां आध्यात्मिक महत्व है, वहीं ये धारक के मन, मस्तिष्क, चर्म, अस्थि, रक्त प्रवाह, वात संस्थान और संवेगों को भी प्रभावित करती हैं। रुद्राक्ष की माला इस दृष्टि से सर्वगुण संपन्न मानी गई है। लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, दत्त तथा नवग्रह आदि की साधना में रुद्राक्ष की माला का उपयोग मनोवांछित फल देने वाला है। माला चाहे जैसी भी हो, उसका शुद्ध पूर्ण और वास्तविक होना आवश्यक है। टूटी-फूटी, आधी-अधूरी, अशुद्ध माला प्रभावकारी नहीं होती। जप के प्रभाव को कम या ज्यादा करने में माला एक प्रमुख उपदान है, इसलिए किसी विद्वान के निर्देश पर ही इसका प्रयोग करना चााहिए। माला को गंगाजल अथवा कच्चे दूध से स्नान करवाने के बाद ही उपयोग में लाना चाहिए। शुद्धता किसी भी माला के प्रभावकारी होने की पहली शर्त है।

हाथी दांत के मनकों से बनी हुई माला से जप करने पर गणेश जी प्रसन्न होते हैं, हालांकि यह माला काफी महंगी और दुर्लभ होती है। कमलगट्टे की माला का प्रयोग शत्रु के नाश और धन प्राप्ति के लिए किया जाता है। संतान प्राप्ति के लिए पुत्र जीवा की अल्प मौली माला फलदायी मानी गई है। पुष्टि कर्म के अंतर्गत सात्विक कार्यों की पूर्ति के लिए चांदी की माला सर्वोत्तम मानी गई है। इसका प्रभाव जप के साथ ही आरंभ हो जाता है।

जबकि मूंगा (प्रवाल) की माला धारण करने व इसके जप में प्रयोग करने से गणेश और लक्ष्मी की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है। धन-संपत्ति, द्रव्य, स्वर्ण आदि की प्राप्ति की कामना मूंगे की माला से पूर्ण हो जाती है। कुश ग्रंथ की माला कुश नामक घास की जड़ को खोद कर बनाई जाती है। इसका जातक अथवा साधक पर जप के दौरान जादुई प्रभाव होता है। सहज उपलब्धता के कारण अक्सर लोग इसे अप्रभावी मानकर हाशिए पर फैंक देते हैं लेकिन अध्यात्म की दुनिया में इसके गुणों का कोई सानी माला नहीं है। कुश ग्रंथी माला समस्त कायिक, वाचिक और मानसिक पातकों का शमन करती हुई साधक को निष्कलंक, प्रदूषणमुक्त, निर्मल और सतेज बनाती हैं। इसके प्रयोग से तामसिक व्याधियों का विनाश होता है।

चंदन की माला दो प्रकार की मिलती है- सफेद और लाल चंदन की। श्री राम, विष्णु, कृष्ण आदि देवताओं की स्तुति, पूजन-अर्चन आदि में सफेद चंदन की माला से किया गया जप देखते-देखते धन-धान्य की प्राप्ति करवा देता है। जबकि लाल चंदन की माला गणेश तथा दुर्गा, लक्ष्मी, त्रिपुर सुंदरी आदि देवी स्वरूपों की उपासना में प्रयोग में लाई जाती है।

तुलसी की माला सस्ती है और सर्वत्र उपलब्ध है। इसलिए राम कृष्ण की उपासना में वैष्णव भक्त इसका बड़ी ही श्रद्धापूर्वक प्रयोग करते हैं। आयुर्वैदिक दृष्टि से भी इसे गले में धारण करने का महत्व है। इसे लोग सुरक्षा कवच मानकर भी गले में पहने रहते हैं।

सोने के मनकों वाली माला जप आदि में तो प्रयोग में कम लाई जाती है लेकिन अनुभव में आया है कि स्वर्ण माला के धारण करने से धन प्राप्ति और पुत्र प्राप्त की कामना शीघ्र पूरी होती है। स्फटिक की माला सौम्य प्रभाव वाली होती है। इसके धारकों पर चंद्रमा और शिव जी की विशेष कृपा होती है। सात्विक और पुष्टि कार्यों के लिए इसके प्रभाव स्वयं सिद्ध हैं। शंखमाला का प्रयोग तांत्रिक विद्याओं की सिद्धि के लिए किया जाता है। शिवजी की पूजा आराधना तथा सात्विक कामनाओं की पूर्ति तथा जप आदि में इसकी लोकप्रियता शिखर पर है।

वैजयंती की माला विष्णु और कृष्ण के भक्तों को प्रिय है। यह बहुप्रयोजनीय है। भक्त तो भक्त, इसे भगवान भी धारण कर सौभाग्य अर्जित करना चाहते हैं। हल्दी की माला गणेश जी की प्रसन्नता के लिए है। बृहस्पति ग्रह तथा बगलामुखी की साधना हल्दी की माला के बिना अधूरी मानी जाती है।


चाहते हैं स्थाई धन समृद्धि और सुख ऐश्वर्य - नित्य करें श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ




-: श्री लक्ष्मी सूक्त  :-


हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥


तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥

प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥12॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥13॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥14॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥15॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥17॥

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥18॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥19॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥20॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥21॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥22॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥23॥

पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥24॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी । गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥25॥

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥26॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥27॥

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥28॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥29॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥30॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥31॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥32॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥33॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥34॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥35॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥36॥

य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥37॥




धन आकर्षित करने के ६ सरल वास्तु टिप्स - मालामाल होने के लिए आजमा कर देखें





 धन जीवन की सबसे बड़ी आवष्यता होती है। इस जगत में भौतिक सुविधा के संसाधन धन के द्वारा ही जुटाये जा सकते हैं। धन प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति इन वास्तु टिप्स को अपनाकर धन आकर्षित कर सकते हैं----



1- घर में धन आकर्षित करने के लिए घर के मुख्य द्वार को स्वच्छ एवं सजाकर रखें। यदि संभव हो तो घर के मुख्य द्वार का रंग इसके अगल-बगल की दीवारों के रंगों से अलग हटकर किया जा सकता है। इससे मुख्य द्वार का आकर्षण बढ़ता है।



2- खिड़कियों में क्रस्टल बाॅल लगाने से ऊर्जा उत्तेजित होती है। जब सूर्य का प्रकाष उन पर पड़ता है, तो ये सुन्दर इन्द्रधनुष का निर्माण करती हैं जिससे घर में वैभव एवं समृद्धि आती है।



3- अपने घर, आॅफिस या प्रतिष्ठान में एक ऐसा दर्पण लगाएं जिससे आपके लाॅकर अथवा कैषबाॅक्स प्रतिबिम्बित हों। यह संकेतात्मक रूप से अवसरों एवं धन को कई गुना बढ़ाता है।




4- फिष एक्वेरियम धन आकर्षित करते हैं। इसे घर की पूर्वोत्तर दिषा में लगाएं। एक्वेरियम में कम से कम नौ मछलियां होनी चाहिए। इनमें आठ गोल्ड फिष और एक काली मछली होनी चाहिए। ये सभी मछलियां जीवंत, सुन्दर एवं स्वस्थ होनी चाहिए क्योंकि उनका निरंतर गतिमान रहना ध्न को भी गतिमान रखता है। ध्यान रहे कि एक्वेरियम के पानी को साफ करते रहना चाहिए।




5- भवन या आॅफिस के परिसर में एक बर्ड फीडर या बर्ड बाथ रखें जिससे वन्य प्राणी आकर्षित हों। वन्य प्राणी अपने साथ सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं तथा घर की हर दिषा में समृद्धि आकर्षित करते हैं।




6- यदि आपको धनाभाव महसूस हो रहा हो तो घर के बाएं कोने में कोई भारी एवं ठोस वस्तु रखनी चाहिए।



Saturday, 4 February 2017

जानिए उपवास कैसे हो सकता है सेहत के लिए लाभदायक - आवश्यक सावधानियाँ



 व्रत या उपवास आस्था के साथ ही स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब व्रत या उपवास के दौरान दापका खानपान उपयुक्त एवं सही हो। यदि आप नवरात्र व्रत के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखें तो पूरे नौ दिन आप स्वस्थ रहेेंगे। सेहत अच्छी होने पर आप नवरात्र के दिनों में मां की पूजा-उपासना सम्पूर्ण मनायोग और पूरी ऊर्जा के साथ कर सकेंगे। नवरात्र के दिनों में खानपान सम्बन्धी कुछ सावधानियां जो आपको बरतनी चाहिए वह इस प्रकार हैं----

1- व्रत में सदैव घर की बनी चीजों को ही खाना चाहिए। बाजार की बनी चीजों के प्रयोग करने से बचें।

2- अपने खाने में पेय पदार्थो अथवा तरल पदार्थो का सेवन अधिक मात्रा में करें। इससे शरीर में स्फूर्ति एवं ताजगी का संचार होगा।

3- पानी को थोड़े-थोड़े समय बाद पीते रहें।

4- व्रत के दौरान नारियल पानी का सेवन भी किया जा सकता है।

5- ऋतु के अनुसार उपलब्ध फलों जैसे-केला, सेब, अनार, पपीता, खीरा, चीकू आदि का सेवन करें। रेशेदार फलों का सेवन भी गुणकारी रहता है।

6- दूध का सेवन अवश्य करें क्योंकि दूध में शरीर के पोषण हेतु तत्व अधिक विद्यमान होते हैं।

7- व्रत में फलों का रस बहुत लाभकारी रहता है। यह आपको तरोताजा रखता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि घर में निकाला गया रस फायदेमंद होता है।

8- रात को पानी में डालकर रखें बादाम और किशमिश को दिन में सेवन करें। इसके सेवन से शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रापत होते हैं।

9- सिंघाड़ा और उसके आटे से बनी चीजों को व्रत में खाना सेहत की दृष्टि से ठीक रहता है। इन चीजों से शरीर को ऊर्जा किलती है।

10- कुट्टू के आटे से बनी चीजें का भी खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।



9 महत्वपूर्ण बातें जिनको अनदेखा करना पड़ सकता है भारी

         


 अनेक बार बहुत छोटी-छोटी बाते जिसे हम नजर अंदाज कर देते है, के कारण भी हमारी मानसिक परेशानियाँ समाप्त नहीे हेाती। अतः इन बातों को ध्यान रखना अनिवार्य है जैसे-



     1-घर के पूजा घर में कभी दो शिवलिंग और तीन गणेश मूर्ति साथ न रखें।


     2- भोजन करने के बाद रात्रि मे कोई बर्तन बिना धोए न छोडे।

      3-घर के मुख्य द्वार के भीतर पायदान रखें। हो सके तो काले रंग का पायदान रखें।


      4-घर क जूते-चप्पलों के लिए एक निश्चित स्थान बनाएॅ। हो सके तो एक अलमारीनुमा स्थान बनाएॅ जहाॅ सभी जूते-चप्पले रखें और दरवाजा बंद कर दें अर्थात् जूते-चप्पले बिखरे हुए दिखाई न दें।


        5-घर में जहाॅ मटकी और पीने का पानी रखा है वहाॅ जूते-चप्पल न ले जाएॅ और प्रतिदिन उस स्थान को साफ-सुथरा रखें।


       6-स्नान घर मे अथवा घर मे कहीं भी नल से पानी न टपके और साथ ही बाल्टियाॅ और पाईप आदि बिखरे हुए न हों।


        7-घर में झाडू को आदरपूर्वक साफ-सफाई के बाद ऐसे निश्चित स्थान मे रखें कि किसी आने-जाने वाले को दिखाई न दें।


       8-कभी देा या तीन झाडू एक साथ न रखें।


        9-घर के शौचालय मे एक कटोरे मे नमक भरकर रखें।